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वैदिक सभ्यता ,कार्यकाल ,विकास ,और धार्मिक,आर्थिक और राजनीतिक जीवन

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 वैदिक सभ्यता 

वैदिक सभ्यता ,कार्यकाल ,विकास ,और धार्मिक,आर्थिक और राजनीतिक जीवन dailyprime247.com

वैदिक सभ्यता का विकास :

वैदिक सभ्यता का उदय हड़प्पा सभ्यता के पतन के बाद से प्रारंभ हुआ | इसे वैदिक सभ्यता या आर्य सभ्यता के नाम से जाना जाता है , क्युकी इस संस्कृति का उदय वेदों से हुआ है |

प्राचीन इतिहास में यह उल्लेखित है की आर्य लोग मध्य एशिया के रास्ते लगभग 1500 BC में पंजाब प्रांत के रास्ते भारत में प्रवेश किए थे |आर्य " नार्डिक प्रजाति से संबंध रखते थे |

सिंधु सभ्यता और आर्य सभ्यता में मूल अंतर यह है की , सिंधु घाटी की सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी और , आर्य सभ्यता एक ग्रामीण सभ्यता थी |

SOURCE : NCERT BOOK

वैदिक काल को दो मुख्य भागो में विभाजित किया गया है |

01 ऋग्वैदिक काल         :     1500 BC से 1000 BC 

02.उत्तरवैदिक काल       :     1000 BC से 600 BC

आर्यों के नामों का उल्लेख अलग - अलग अभिलेखों में अलग अलग मिलता है ,जैसे - 

अनातोलीइया : हितित ,             इराक : कस्सी,             सीरिया : मितिनी 

ईरान के प्रमुख ग्रंथ जेंदावेस्ता में निम्नलिखित आर्य देवताओं का नाम उल्लेखित है : इंद्र , वरुण , नासात्य इत्यादि |

वेद शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा के " विद " शब्द से हुई है |जिसका शाब्दिक अर्थ होता है , जानना या ज्ञान की प्राप्ति करना |

वेदों को संकलित करने का श्रेय महर्षि " कृष्ण द्वैपायन " को जाता हैं , जिन्हे "  वेदव्यास " के नाम से भी जाना जाता है |

वेदों की संख्या चार है - 01. ऋग वेद 02. यजुर्वेद 03. सामवेद 04. अथर्व वेद.

इनमे से प्रथम तीन वेद ऋग्वेद , यजुर्वेद , और सामवेद को वेदत्रयी के नाम से जाना जाता है |

Read more : प्राचीन भारत के ऐतिहासिक स्रोत  सिंधु घाटी सभ्यता का विकास और इतिहास .

चार वेद और उनकी विशेषताएँ:

वेद का नाम मुख्य विषय / स्वरूप विशेषताएँ
ऋग्वेद (Ṛgveda) सबसे प्राचीन और प्रमुख वेद इसमें वैदिक देवताओं की स्तुति (ऋचाएँ) संकलित हैं। जीवन, प्रकृति, यज्ञ और देवताओं की प्रार्थना पर केंद्रित।
यजुर्वेद (Yajurveda) यज्ञ की विधियाँ और नियम यज्ञ और अनुष्ठानों में प्रयुक्त मंत्रों का संग्रह। गद्य और पद्य (मंत्र) दोनों रूपों में रचित।
सामवेद (Sāmaveda) संगीत और गान की विधि इसमें ऋग्वेद की ऋचाओं को संगीतबद्ध किया गया है। सामगान का प्रथम और मुख्य स्रोत।
अथर्ववेद (Atharvaveda) जीवन, चिकित्सा और व्यवहारिक ज्ञान इसमें चिकित्सा, रोग निवारण, कृषि, जादू-टोना, औषधि, और लोकजीवन से जुड़े मंत्रों का वर्णन।

मुख्य भारतीय दर्शन – संक्षिप्त परिचय

क्रम दर्शन का नाम मुख्य विचार / विशेषता प्रवर्तक / आचार्य
1. सांख्य दर्शन 25 तत्त्वों की मान्यता; प्रथम तत्त्व प्रकृति। सत्य, जीव और परमात्मा का विवेचन। कपिल मुनि
2. योग दर्शन आत्मा और परमात्मा का मिलन; साधना और ध्यान पर बल। पतंजलि
3. वैशेषिक दर्शन परमाणु (अणु) और पदार्थों का अध्ययन; पदार्थ और गुणों की चर्चा। कणाद
4. न्याय दर्शन तर्क और प्रमाण पर आधारित; ज्ञान और युक्तियों की व्याख्या। गौतम (अक्षपाद)
5. पूर्व मीमांसा वेदों के कर्मकांड और यज्ञ-प्रक्रियाओं पर बल। जैमिनी
6. उत्तर मीमांसा (वेदांत) केवल ब्रह्म ही सत्य; अद्वैत दर्शन की व्याख्या। बादरायण (व्यास)

वेदों को  समझने के लिए 6 वेदांग की रचना किया गया है |

क्रम वेदांग का नाम विषय / उद्देश्य
1. शिक्षा (Śikṣā) शब्दों और मंत्रों का उच्चारण सीखना
2. कल्प (Kalpa) विधि और यज्ञ-प्रक्रिया से संबंधित ज्ञान
3. निरुक्त (Nirukta) कठिन और प्राचीन वैदिक शब्दों का अर्थ स्पष्ट करना
4. ज्योतिष (Jyotiṣa) ग्रह-नक्षत्र और काल-गणना (खगोल विज्ञान)
5. व्याकरण (Vyākaraṇa) संस्कृत भाषा का शुद्ध व्याकरण
6. छन्द (Chhanda) वैदिक मंत्रों और ऋचाओं में प्रयुक्त छंदों का ज्ञान

उपनिषद (Upaniṣad)

  • पनिषद वे ग्रंथ हैं जिनमें ज्ञान (ब्रह्मविद्या) और आत्मा-परमात्मा के संबंध की गहरी व्याख्या की गई है इन्हें वेदांत भी कहा जाता है, क्योंकि ये वेदों के अंतिम और दार्शनिक अंश हैं।
  • इनका उद्देश्य मानव जीवन और मोक्ष के मार्ग को स्पष्ट करना है।
  • उपनिषद सत्य, आत्मज्ञान और ईश्वर की प्राप्ति पर केंद्रित हैं।

मुण्डक उपनिषद (Muṇḍaka Upaniṣad)

  • यह उपनिषद अथर्ववेद से संबंधित है ,और इसे सबसे प्रसिद्ध व दार्शनिक उपनिषदों में गिना जाता है।
  • इसमें सत्य (Truth) और ब्रह्मज्ञान को जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य माना गया है।
  • उपनिषद में स्पष्ट कहा गया है कि सत्य को जानकर ही मोक्ष और परम शांति प्राप्त होती है।”
  • इसमें दो प्रकार के ज्ञान बताए गए हैं –
  • अपरा विद्या (निम्न ज्ञान) → वेदों, यज्ञों, अनुष्ठानों का ज्ञान
  • परा विद्या (उच्च ज्ञान) → ब्रह्म का बोध और आत्मा का साक्षात्कार
  • यही परा विद्या मनुष्य को मोक्ष और अमरत्व की ओर ले जाती है।

प्राचीन (पौराणिक) साहित्य

  • पौराणिक साहित्य बहुत ही व्यापक है।
  • इसमें कुल 18 मुख्य पुराण और 18 उपपुराण बताए गए हैं।

क्रम पुराण का नाम संक्षिप्त परिचय / विषय-वस्तु
1. विष्णु पुराण विष्णु भगवान की महिमा और अवतारों का वर्णन
2. नारद पुराण भक्ति, धर्म और उपासना से संबंधित
3. गौरड़ (गरुड़) पुराण यमराज, मृत्यु, परलोक और धर्मशास्त्र का वर्णन
4. वराह पुराण वराह अवतार और सृष्टि का वर्णन
5. भागवत पुराण कृष्ण चरित्र और भक्तिभाव पर केंद्रित
6. मत्स्य पुराण मत्स्य अवतार और प्रलय कथा
7. कूर्म पुराण कूर्म अवतार और सृष्टि का पुनर्निर्माण
8. लिंग पुराण शिवलिंग की महिमा और शिव भक्ति
9. शिव पुराण भगवान शिव के स्वरूप, अवतार और उपासना
10. स्कन्द पुराण कार्तिकेय (स्कन्द) की कथाएँ, सबसे बड़ा पुराण
11. अग्नि पुराण धर्म, नीति, ज्योतिष, वास्तु और आयुर्वेद
12. ब्रह्माण्ड पुराण सृष्टि और ब्रह्माण्ड की रचना
13. ब्रह्मवैवर्त पुराण राधा-कृष्ण भक्ति और सृष्टि का विस्तार
14. मार्कण्डेय पुराण देवी महात्म्य और दुर्गा सप्तशती
15. भविष्य पुराण भविष्य की घटनाएँ और भविष्यवाणियाँ
16. वामन पुराण वामन अवतार और धर्म शिक्षाएँ
17. पद्म पुराण धर्म, तीर्थ, कथा और भक्ति
18. ब्रह्म पुराण सृष्टि, भूगोल और तीर्थों का वर्णन

* विष्णु पुराण में चार युगों का उल्लेख मिलता है :सत्य युगत्रेता युग, द्वापर युग ,कलियुग

पुराणों में पाँच महत्त्वपूर्ण लक्षण बताए गए हैं, जिन्हें पञ्चलक्षण कहते हैं:

  • सर्ग (सृष्टि की उत्पत्ति) – ब्रह्मांड का निर्माण
  • प्रति-सर्ग (सृष्टि का पुनः निर्माण) – प्रलय के बाद सृष्टि का पुनर्निर्माण
  • वंश (राजाओं और ऋषियों का वंशावली विवरण)
  • मन्वंतर (समय की पुनरावृत्ति की प्रक्रिया)
  • वंशनुचरित (वंशजों की कथाएँ और चरित्र)
  • 👉 ये पाँच लक्षण मिलकर इतिहास, धर्म और साहित्य को जोड़ते हैं और इन्हीं से पौराणिक ग्रंथों की नींव बनती है।

महाजनपद (16 महाजनपदों का भौगोलिक वितरण)

दिशा / क्षेत्र प्रमुख राज्य / जनपद
मध्य (उत्तर भारत) कुरु, पंचाल, वत्स, मगध
पूर्व (Eastern) अंग, मगध, विदेह (मिथिला), काशी
दक्षिण (Southern) अश्वक, अवंती, चेदी, विदर्भ
पश्चिम (Western) सौराष्ट्र, मालव, गांधार
उत्तर (Northern) कम्बोज, मद्र, उशीनर

ऋग्वैदिक काल ( 1500 BC 1000 BC)

ऋग्वैदिक काल यज्ञ अनुष्ठान

ऋग्वैदिक काल की जानकारी का मुख्य जानकारी हमें ऋग्वेद से ही मिलता है , जिसमे कुल 10 मंडल , और 1028 सूक्त का संकलन है |

इस काल के 02 से 08 मंडल को सप्तऋषि मंडल कहा जाता है , क्युकी ये सात महान ऋषियों द्वारा रचा गया है |

ऋग्वेद के सबसे प्राचीन मंडल 02 से 07 तक का मंडल है |और सबसे नवीनतम मंडल 01 से 10 तक का मंडल है |

" पुरुष सूक्त " का उल्लेख ऋग्वेद के 10 वे मंडल में  किया गया है , और इसे चार वर्णों में विभाजित किया गया था |

ऋग्वेद के तृतीय मंडल में " गायत्री महामंत्र " का उल्लेख किया गया है , जो की देवी सावित्री को समर्पित है |

आर्यों का क्षेत्र विस्तार 

प्रारंभ में आर्य लोग सप्त सैंधव स्थान , अर्थात सात नदियों के देश में ,स्थित था  | सिंधु ( इंडस ) , झेलम ( वितस्ता ) , रावी ( परुषणी , चेनाब ( अस्किनी ) , व्यास ( विपासा ) , सतलज ( सतुद्री ) , और घग्घर ( सरस्वती ) इन सात नदियों के मध्य स्थित था |

ऋग्वैदिक काल में सिंधु नदी का उल्लेख सर्वाधिक बार और , सरस्वती नदी का उल्लेख एक पवित्र नदी के रूप में किया गया है |

सरस्वती नदी को ब्रह्मावर्त घाटी के नाम से भी जाना जाता है | 

इस काल में हिमालय या गंगा का उल्लेख एक बार और यमुना का उल्लेख तीन बार किया गया है |

ऋग्वैदिक काल के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ " सोम रस " था जिसे वे " मुजवंत " पर्वत से प्राप्त करते थे |

ऋग्वैदिक काल का सामाजिक विस्तार :- 

  • ऋग्वैदिक समाज के लोगो को " जन " और गैर ऋग्वैदिक लोगों को " दास/ दस्यु के नाम से जाना जाता था |
  • दासों को घरों में कार्य करने के लिए रखा जाता था |
  • आर्य लोग का सामाजिक जीवन वर्ण व्यवस्था पर आधारित था ,जो की दासों के भिन्न भिन्न रंगो के संदर्भ में किया जाता था |
  • ऋग्वैदिक काल एक " पितृसत्तात्मक " समाज का उदाहरण है , इस काल में कुछ प्रमुख विदुषी स्त्रियों का भी वर्णन किया गया है , जैसे - लोपामुद्रा , घोषा, सिक्ता, विशवरा,और आपाला इत्यादि |
  • इस समाज में बाल विवाह और सती प्रथा जैसी कुरीतियां मौजूद नहीं थी ,लेकिन , विधवाविवाह जैसी प्रचलन मौजूद थी , आगे चलकर उत्तरवैदिक काल आते आते ये सभी कुरीतियां उत्पन होने लगी थी |विधवा विवाह को " नियोग विवाह " के नाम से भी जाना जाता है |
  • खेलो में , जुआ ,रथ दौड़ ,घोड़ा दौड़ इत्यादि खेल मौजूद था |
  • इस काल के धनी व्यक्ति को गोमत, और और बेटी को दौहित्री के नाम से जाना जाता था |

राजनीति व्यवस्था :- 

आर्यों के राजनीतिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति राजा हुआ करता था , जिसे राजन के नाम से भी जाना जाता था , राजा ,की सहायता के लिए पुरोहित और सेना हुआ करती थी , और उसके अंदर कई सारे निकाय कार्य करती थी ,  जैसे सभा एवम समिति , विदथ गण,इत्यादि |लेकिन राजा का सैनिक स्थाई रूप से नही हुआ करता था ,जब युद्ध या किसी अन्य कारण से सैनिक की जरूरत पड़ती थी तब राजा ,सैनिक को बुलाता था |

सभा एक छोटी समिति थी ,लेकिन समिति एक विशाल समिति हुआ करता था |विदथ एक प्राचीन संस्था थी 

पूरे साम्राज्य को अलग अलग भागो में विभाजित किया गया था , जन की विश में , और विश को कुल में | कुल के प्रमुख को कुलाप कहा जाता था , जो की घर का प्रमुख हुआ करता था , और इसका नेतृत्व गृहपति के द्वारा किया जाता था |

ऋग्वैदिक काल में गायों के लिए पवित्र स्थान का दर्जा प्राप्त था , उस समय गाय के लिए गविष्टि यज्ञ का आयोजन किया जाता था |

कई कुलो को मिलाकर एक ग्राम का निर्माण होता था , जिसका नेतृत्व "ग्रामीण" के द्वारा किया जाता था |

बड़े भूमि का अधिकारी जो कूलो और ग्रामीणों का नेता होता था उसे " वाजपति " के नाम से जाना  जाता था |

राजा का पद वंशानुगत हुआ करता था ,जिसका प्रमुख कार्य जनता की रक्षा करना , एवं किसी भी परिस्थिति में जनता का साथ देना और उनकी रक्षा करना | इसलिए राजा को " गोप्ताजनश्य " के नाम से भी जाना जाता था |

कुछ गैर राजशाही राज्य भी हुआ करता था जिसके प्रमुख को " गणपति " या ज्येष्टक के नाम से जाना जाता था |

राजा के पास कोई स्थाई सेना नही हुआ करता था , बल्कि जब राजा को सेना की आवश्यकता होती थी , तब सेना का कार्य आदिवासी समूह के लोग करते थे |कुछ प्रमुख आदिवासी प्रमुख जैसे , व्रत गण , ग्राम , सारधा इत्यादि |

दाशराज्ञ युद्ध रावी नदी के तट पर आर्यों और राजा सुदाश के बीच हुआ था |

ऋग्वैदिक कालीन अर्थव्यवस्था : 

ऋग्वैदिक काल में पशु संपति का मुख्य स्रोत हुआ करता था , और कृषि का उत्पादन केवल उपभोग के लिए किया जाता था , उसका व्यापार नहीं किया जाता था |

ऋग्वैदिक काल में लकड़ी के हल का प्रमाण भी मिला है |

उत्पादन का कुल हिस्सा राजा को उपहार स्वरूप दिया जाता था जिसे " बाली / कर " कर नाम से जाना जाता था |

कर लगाने और धन जमा करने जैसी कोई परंपरा नहीं  थी |

मुद्रा या सिक्का को कोई प्रामाणिक साक्ष्य नहीं मिला है , परंतु " निष्क " नामक सोने के सिक्के के आकार का एक गोल आकार का वस्तु मिला है ,जिसे ऐसा माना जाता है की , यह उपहार में दिया जाने वाला , एक महत्वपूर्ण वस्तु है |

समान खरीदने के लिए " वस्तु विनियमन " प्रणाली की व्यवस्था हुआ करता था |

ऋग्वैदिक काल में लोहे को "श्याम अयस "  कहा  जाता था "

पंजाब और हरियाणा के क्षेत्रों से तांबे के साक्ष्य का भी प्रमाण मिला है |

मिट्टी के बर्तन पर गेरूए रंग की मृदभांड और चित्रित धूसर मृदभांड का प्रमाण मिला है |

इस काल में जो सोने के सिक्के जैसी गोल आकार का वस्तु मिला है , उसे " हिरण्य " के नाम से जाना जाता था |

आर्य लोग स्पॉक वाली पहिए का प्रयोग करते थे , जिससे की पहिया अधिक वजन को आसानी से उठा सके |

आर्यों के जीवन में घोड़े का अत्यधिक महत्व रहा है , क्युकी वे घोड़े के माध्यम से कई सारे गतिविधियां करते थे , जैसे शिकार करना , युद्ध लड़ना , समान ढोना इत्यादि |

धार्मिक जीवन शैली : 

ऋग्वैदिक काल में मूर्ति पूजन का प्रचलन नही था | परंतु बली प्रथा का प्रचल था , सामान्यतः ऐसा कहा कहा जाता है की , बली , इंसानों को बीमारी से बचाने हेतु  , जानवरो की रक्षा , और  प्राकृतिक रक्षा हेतु दिया जाता था |जादू टोना , का प्रचलन नही था |

ऋग्वैदिक काल के महत्वपूर्ण देवता " इंद्र " को माना  जाता है | अन्य देवता , वरुण , अग्नि , और सोम भी मौजूद थे |

इस काल में महत्वपूर्ण पुरोहित , विश्वामित्र और वशिष्ठ हुआ करते थे |

उत्तर वैदिक काल ( 1000 BC से 600 BC )

उत्तरवैदिक काल में मुख्य रूप से तीन वेदों का उल्लेख किया गया है , यजुर्वेद , साम वेद ,और अथर्व वेद |और ग्रंथो में ब्राह्मण ग्रन्थ , आरण्यक , उपनिषद , इत्यादि का वर्णन किया गया है |

वनों में लिखी गई पुस्तक को  आरण्यक कहा जाता है |आरण्यक , तत्व और मीमांसा पर आधारित पुस्तक स्रोत है  |

आर्य लोग मुख्य रूप से पश्चिमी घाटी में बसे थे जिन्हे " आर्यावर्त कहा जाता था |

सामाजिक जीवन :

उतर वैदिक काल में आर्यों के समाज चार वर्णों और कई जातियों में  विभाजित था , समाज में महिलाओं का स्थिति अच्छी नहीं थी , जैसा ऋग्वैदिक काल में था , स्त्रियों के साथ अस्पृश्यता का भाव उत्पन्न हो गया था |उन्हे शिक्षा  प्राप्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था |

इस काल में गोत्र नमक नए वर्ग का जन्म हुआ , पशुओं के साथ साथ खुद भी उन्ही के साथ जीवन व्यतीत करने वाले को गोत्र कहा जाता था |

  • अतिथि को गोहाना या गोधना के नाम से जाना जाता था |

ऐसा कहा जाता है की जो व्यक्ति अछूता है , उन्हे पृथ्वी पर दुबारा जन्म लेना पड़ता है |,कुछ अछूतो का नाम ; निषाद , चांडाल , शासर इत्यादि |

  • उत्तर वैदिक  काल तक समाज में सती प्रथा और बाल विवाह प्रथा अपन पैर जमाने लगे थे |

किसी व्यक्ति को पुरुषार्थ बनने के लिए चार प्रकार की नियम को पालन करना जरूरी था | 01 ब्रह्मचर्य 02. गृहस्थ 03. वानप्रस्थ 04. सन्यास .

राजनीतिक जीवन : 

जनपद के रूप में जानो का विकास हुआ , उस समय हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ " कुरु" राज्य की राजधानी हुआ करती  थी |

अपना अपना क्षेत्र विस्तार हेतु जनपदों में हमेशा युद्ध हुआ करता था | 

मुखिया का पद भी वंशानुगत हो गया था , लेकिन अभी भी राजा के पास कोई स्थाई सेना कार्य करने के लिए नहीं थी 

राजा अपनी राज्य को सुरक्षा और उसका विस्तार करने हेतु कई प्रकार के यज्ञ अनुष्ठान किया करता था ,जैसे . अश्वमेध यज्ञ , राजसूय यज्ञ , वाजपेय यज्ञ ,इत्यादि |

इस समय तक सभा और समिति पर निर्भरता कम हो गई थी , 

महिला वर्ग को यज्ञ में शामिल होने का अनुमति नहीं था |

राजा कई प्रकार की उपाधियां धारण किया करता था , जैसे ,सम्राट , एकराट, विराट इत्यादि |

आर्थिक जीवन 

उतरवैदिक काल तक लोहे की खोज हो चुकी थी , जिसके कारण , कृषि करना आसान हो गया था , और अब लोग एक जगह पर रहकर ही खेती करते थे और अपना जीवन निर्वहन किया करते थे , और साथ में पशुपालन भी करने लगे | खेती में वे गेहूं , जौ, चावल ,मूंग ,उरद , और तिल की खेती किया करते थे |

राजा को जाकर या बाली के रूप में उत्पादन का 1/6 भाग या 1/12 भाग अनाज दिया जाता था |

ऐसा माना जाता है की इस काल तक समुद्री व्यापार भी प्रारंभ हो गया था , और लोग अन्य देशों के साथ व्यापार कने लगे थे |

धार्मिक जीवन |

उतरवैदिक काल की सबसे महत्वपूर्ण देवता इंद्र , वरुण थे |

उतरवैदिक काल आते आते मूर्तिपूजन और जादू टोना जैसी कुरीतियां पनपने लगी थी |

महाभारत : विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य

  • महाभारत की रचना लगभग 500 ईसा पूर्व से 600 ईसा पूर्व के बीच शुरू हुई और आगे चलकर इसमें लगातार संशोधन होते रहे। प्रारंभ में इसमें लगभग 8,800 श्लोक थे, जिसे जयसंहिता कहा गया।

  • समय के साथ इसमें श्लोकों की संख्या बढ़कर 24,000 हुई और इसे भारत नाम दिया गया। अंततः इसमें लगभग 1,00,000 श्लोक हो गए और तब यह महाभारत या महाकाव्य कहलाया।

  • इसे विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है।

अनुवाद और भाषा

  • महाभारत का पहला अनुवाद तमिल भाषा में राजा कुलोत्तुंग चोल तृतीय के समय कवि कम्बन ने किया, जिसे राजावर्तम कहा गया।

  • बांग्ला भाषा में पहला अनुवाद कृतिवास ओझा ने किया।

  • अंग्रेजी में इसका अनुवाद के.एम. गांगुली और बाद में आर.सी. दत्त ने किया।

  • संस्कृत से हिंदी में अनुवाद नंदकिशोर उपाध्याय और पंडित परशुराम शर्मा ने किया।

महाकाव्य की विशेषताएँ

  • महाभारत को पंचम वेद भी कहा जाता है क्योंकि इसमें प्राचीन भारतीय समाज, संस्कृति और धर्म का विस्तृत चित्रण है।

  • इसमें कुल 18 पर्व (खंड) हैं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध भीष्म पर्व है।

  • भीष्म पर्व में ही भगवद्गीता सम्मिलित है, जिसमें अर्जुन और कृष्ण का संवाद मिलता है।

  • महाभारत में न केवल धार्मिक कथाएँ हैं बल्कि इसमें राजनीति, नीति, समाजशास्त्र और धर्मशास्त्र से संबंधित शिक्षाएँ भी दी गई हैं।

महत्त्व

  • महाभारत केवल एक ग्रंथ नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति का दर्पण है।

  • इसमें नैतिक मूल्यों, कर्तव्य, धर्म, युद्ध और जीवन के आदर्शों का विस्तृत वर्णन है।

  • इसी कारण इसे धर्मग्रंथ, इतिहास, और महाकाव्य — तीनों का दर्जा प्राप्त है।

महाभारत : परिचय

  • महाभारत को विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य माना जाता है।

  • इसकी रचना मूल रूप से संस्कृत भाषा में हुई।

  • इसमें कुल 18 पर्व (खंड) हैं।

  • इसका एक हिस्सा भगवद्गीता है, जो कर्म, भक्ति और ज्ञान का समन्वय प्रस्तुत करती है।

  • महाभारत का सबसे बड़ा पर्व शांति पर्व है।

  • महाभारत का पहला अनुवाद तमिल भाषा में पेरुंदेव नारायण ने किया।

  • बांग्ला भाषा में इसका पहला अनुवाद कृतिवास ओझा ने किया।

  • फारसी भाषा में अनुवाद जैनुल अबिदीन के समय जफर खान ने किया।

नैसर्गिक/पौराणिक देवताओं का स्वरूप व विशेषताएँ (तालिका रूप में)

देवता / देवी स्वरूप / क्षेत्र विशेषताएँ
वर्षा/बादलों के देवता वर्षा और बादलों के अधिपति लगभग 250 अस्त्र; प्राचीन काल से पूजनीय; उत्तर वैदिक काल में भी महत्व।
वायु देवता प्राण और शक्ति के प्रतीक जीवन और श्वास के स्रोत; शक्ति और गति प्रदान करने वाले; उत्तर वैदिक काल में प्रमुख।
सूर्य देवता जीवन और प्रकाश के स्रोत सहयोगी देवता – मित्र, वरुण, अश्विन; विवाह और रोग निवारण से जुड़ी पूजा; विश्वास और समर्पण का प्रतीक।
अग्नि देवता यज्ञ और पवित्रता के देवता शुद्धि के प्रतीक; रोगों से रक्षा; पूजा में महत्वपूर्ण; सूर्य के सहयोगी।
वरुण देवता जल और नैतिकता के देवता सबसे शक्तिशाली देवता; व्यवस्था और नियम बनाए रखने वाले; उत्तर वैदिक काल में प्रमुख।
सोम देवता सोम रस (पेय) के प्रतीक सबसे कम शक्तियाँ (5 अस्त्र, 3 पद); वैदिक यज्ञों में विशेष महत्व।
पृथ्वी देवी मातृत्व और संपन्नता की देवी जीवनदायिनी, पोषण करने वाली शक्ति।
अरण्यानी देवी जंगलों और प्रकृति की देवी वनों और प्राकृतिक जीवन से संबंधित।
यमराज मृत्यु और न्याय के देवता परलोक के अधिपति; उत्तर वैदिक काल में विशेष महत्व।
उषा देवी भोर (सुबह) की देवी सौंदर्य और नई शुरुआत का प्रतीक।

वैदिक ग्रंथों का वर्गीकरण : संहिता और ब्राह्मण

1. संहिता 

  • संहिताएँ वे वैदिक ग्रंथ हैं जिनमें मंत्र और ऋचाओं का संग्रह होता है।

  • इन्हें सुनकर, स्मरण करके और उच्चारण के माध्यम से ऋषियों ने देवताओं की स्तुति, प्रार्थना और आह्वान हेतु उपयोग किया।

  • चारों वेद (ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद) की अपनी-अपनी संहिताएँ हैं।

2. ब्राह्मण

  • ब्राह्मण वे ग्रंथ हैं जिनमें यज्ञ, अनुष्ठान और वैदिक कर्मकांड की व्याख्या दी गई है।

  • ये केवल ऋषियों या आचार्यों द्वारा याद रखे जाते थे और सामान्य जन इनमें सीधे सम्मिलित नहीं होते थे।

  • इन ग्रंथों में देवताओं, अनुष्ठानों, वेदांगों और उपवेदों से संबंधित विस्तृत विवरण और व्याख्या उपलब्ध है।

ब्राह्मण ग्रंथ और उनके संबंधित वेद

ब्राह्मण ग्रंथ संबंधित वेद प्रमुख विशेषताएँ
ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद यज्ञ-विधि और अनुष्ठानों की व्याख्या
शतपथ ब्राह्मण यजुर्वेद विस्तृत यज्ञ-विधान, सामाजिक और धार्मिक नियम
तैत्तिरीय ब्राह्मण कृष्ण यजुर्वेद यज्ञ-प्रक्रिया और देवताओं की व्याख्या
पंचविंश ब्राह्मण सामवेद सामगान और स्तोत्रों की व्याख्या
गोपथ ब्राह्मण अथर्ववेद अथर्ववेद से संबंधित अनुष्ठान और व्याख्या

प्रमुख उपनिषद और उनके विषय

उपनिषद का नाम मुख्य विषय-वस्तु
ईशोपनिषद आत्मा और ब्रह्म का संबंध
केन उपनिषद ज्ञान और इंद्रियों की शक्ति
कठ उपनिषद आत्मा, मृत्यु और मोक्ष
मुण्डक उपनिषद ब्रह्मज्ञान और साधना
प्रश्न उपनिषद जीवन, प्राण और ब्रह्म के प्रश्न
माण्डूक्य उपनिषद ओम् का महत्व और ध्यान
छान्दोग्य उपनिषद उपासना, ध्यान और आत्मा
बृहदारण्यक उपनिषद आत्मा, ब्रह्म और अद्वैत का दर्शन

वेदांग और उपवेद

नाम विषय-वस्तु
सामवेद ऋग्वैदिक ऋचाओं का गान और संगीत
अथर्ववेद स्वास्थ्य, चिकित्सा, औषधि, कृषि और पशुपालन
आयुर्वेद (उपवेद) चिकित्सा और रोग-निवारण
धनुर्वेद (उपवेद) युद्धकला और शस्त्रविद्या
गंधर्ववेद (उपवेद) संगीत और नृत्य
अर्थवेद (उपवेद) समाज और अर्थव्यवस्था

मुख्य उपनिषद और उनके विषय

उपनिषद का नाम संबंधित वेद मुख्य विषय / विशेषता
ऐतरेय उपनिषद ऋग्वेद आत्मा और ब्रह्म का स्वरूप; सृष्टि की उत्पत्ति
छान्दोग्य उपनिषद सामवेद ध्यान, उपासना, “तत्त्वमसि” महावाक्य
केन उपनिषद सामवेद ज्ञान और इंद्रियों का महत्व; ईश्वर की शक्ति
कठ उपनिषद यजुर्वेद (कृष्ण) नचिकेता और यमराज का संवाद; आत्मा और मृत्यु का रहस्य
मुण्डक उपनिषद अथर्ववेद परा और अपरा विद्या; सत्य और ब्रह्मज्ञान
ईश उपनिषद यजुर्वेद (शुक्ल) कर्म और ज्ञान का संतुलन; ईश्वर सर्वव्यापक
श्वेताश्वतर उपनिषद यजुर्वेद ईश्वर, भक्ति और योग का महत्व
प्रश्न उपनिषद अथर्ववेद प्राण, आत्मा और ब्रह्म से जुड़े प्रश्नों के उत्तर
माण्डूक्य उपनिषद अथर्ववेद ओम् का महत्व; जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति अवस्थाएँ
बृहदारण्यक उपनिषद यजुर्वेद (शुक्ल) आत्मा, ब्रह्म और अद्वैत दर्शन की विस्तृत चर्चा

  • ऐतरेय ब्राह्मण में वर्णित शासन प्रणाली
दिशा / क्षेत्र राज्य / जनपद का नाम
पूर्व दिशा (East) विदेह , कोसल , काशी , पाँचाल 
पश्चिम दिशा (West) कुरु , पांचाल 
उत्तर दिशा (North) मद्र , उशीनर 
दक्षिण दिशा (South) विदर्भ , आंध्र , दक्षिणापथ के अन्य जनपद
मध्य भारत (Central) मगध , अवंती , चेदी


प्राचीन भारतीय प्रशासनिक पद और उनके कार्य

पद / उपाधि कार्य / उत्तरदायित्व
चतुरंगबलाध्यक्ष (Cāturanga-bala-adhyakṣa) भूमि और सेना का प्रमुख अधिकारी
थोकश्रेणि-प्रमुख (Thokśreṇi-pramukh) सैनिक दस्तों का नेतृत्व
ग्रामिण / ग्रामाध्यक्ष (Grāmaṇī / Gramādhyakṣa) गाँव का मुखिया, कर वसूली और व्यवस्था
सेनापति (Senāpati) सम्पूर्ण सेना का प्रमुख
प्रधान न्यायाधीश न्याय व्यवस्था का संचालन
ग्रामणी (Grāmaṇī) गाँव प्रशासन का प्रमुख अधिकारी
भागध्यक्ष / कराध्यक्ष कर वसूली और राजस्व प्रबंधन
कुलपति / परिवार प्रमुख परिवार और शिक्षा-संस्थानों का प्रमुख
महामंत्री (Mahāmantrī) राजा का मुख्य परामर्शदाता
सचिव एवं संदेशवाहक संदेशों का आदान-प्रदान, लेखन और आदेश प्रसारण
स्वराष्ट्राध्यक्ष / दुर्गाध्यक्ष किले और राज्य की रक्षा का अधिकारी
मध्यस्थ (Mediator) विवाद और संघर्ष निपटाने वाला अधिकारी
रथाध्यक्ष रथ और अश्व विभाग का प्रभारी
पालयक (Polayaka) नगर या प्रांत का शासक अधिकारी
संघाध्यक्ष / संघनायक व्यापारिक संघ या गिल्ड का प्रमुख
गौपालक / पशुपालन प्रमुख कर संग्रह और पशुपालन विभाग का अधिकारी
अकाउंटेंट / लेखाधिकारी आय-व्यय का लेखा रखने वाला अधिकारी
आदेशपाल / आज्ञापालक राजा के आदेशों को लागू करने वाला
अतिथि अधिकारी (Atithi-adhyakṣa) अतिथियों और विदेशी आगंतुकों की देखरेख