🕉️ जैन धर्म का परिचय (599–527 ई.पू.)
| जैन धर्म का इतिहास और संस्थापक: Source : NCERT BOOK जैन धर्म का कोई एक संस्थापक नहीं है, बल्कि यह तीर्थंकरों (आध्यात्मिक गुरु) की परंपरा पर आधारित है। |
वर्तमान काल (अवसर्पिणी) के अंतिम 24वें तीर्थंकर हैं, भगवान महावीर स्वामी (599–527 ई.पू.)।
बौद्ध धर्म (गौतम बुद्ध)गौतम बुद्ध का जीवन परिचय, चार आर्य सत्य, अष्टांगिक मार्ग और बौद्ध धर्म का प्रसार।
🕉️ जैन धर्म की उत्पति
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"जैन" शब्द ‘जिन’ से बना है, जिसका अर्थ है — इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति।
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जैन धर्म के आदि प्रवर्तक ऋषभदेव माने जाते हैं, जिनका उल्लेख वैदिक ग्रंथों में भी मिलता है। माना जाता है कि इनका समय लगभग 1500 ईसा पूर्व था, जो जैन परंपरा के अनुसार प्राचीनतम काल से जुड़ा है।
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जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए, जिनमें ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे।
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जैन धर्म के 23वें और 24वें तीर्थंकर ऐतिहासिक रूप से प्रमाणित माने जाते हैं।
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23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, जिन्होंने निग्रंथ संप्रदाय की स्थापना की थी, जिसे बाद में निर्ग्रंथ (बैराग्यशील) भी कहा गया।
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पार्श्वनाथ के लगभग 250 वर्ष बाद महावीर स्वामी का जन्म हुआ। महावीर स्वामी ने पार्श्वनाथ की शिक्षाओं को आगे बढ़ाया और जैन धर्म को व्यवस्थित रूप दिया।
🙏 अंतिम महावीर स्वामी
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जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक भगवान महावीर स्वामी माने जाते हैं। वे जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे।
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इनका जन्म 540 ईसा पूर्व में कुंडग्राम (बिहार) में हुआ। उनके बचपन का नाम वर्धमान था।
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उनके पिता का नाम सिद्धार्थ और माता का नाम त्रिशला था।
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महावीर स्वामी ज्ञान और संयम के प्रतीक थे।
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30 वर्ष की आयु में उन्होंने संसार त्यागकर संन्यास धारण किया और आत्मज्ञान की खोज में निकल पड़े।
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12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद, बिहार के जमुई जिले में ऋजुपालिका नदी के किनारे उन्हें कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च ज्ञान) की प्राप्ति हुई।
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ज्ञान प्राप्ति के बाद उन्होंने प्रथम उपदेश विपुलाचल पर्वत (राजगृह) में दिया।
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उनके प्रथम शिष्य गौतम गौतम (इंद्रभूति गौतम) थे।
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उनके प्रमुख शिष्यों में गणधर कहलाए जाने वाले 11 आचार्य थे।
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इन 11 गणधरों ने आगे चलकर जैन आगमों की रचना और शिक्षाओं का प्रचार किया।
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प्रमुख गणधरों में सुधर्मा स्वामी, जंभु स्वामी, चंपा नरेश चंदना बाला आदि का नाम उल्लेखनीय है।
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महावीर स्वामी ने जैन धर्म का प्रचार समस्त भारत में किया और 72 वर्ष की आयु में पावापुरी (बिहार) में उनका निर्वाण हुआ।
🌼 निर्वाण प्राप्ति का सिद्धांत
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जैन धर्म के अनुसार, जब जीव अपने समस्त कर्मों को समाप्त कर देता है, तब वह मुक्ति या निर्वाण प्राप्त करता है।
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यह अवस्था पूर्ण ज्ञान, अनंत सुख और जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति की प्रतीक मानी जाती है।
🕉️ जैन धर्म के त्रिरत्न :
1. सम्यक श्रद्धा (दर्शन)
तीर्थंकरों और उनके बताए गए मार्ग पर पूर्ण विश्वास रखना, उनके उपदेशों में श्रद्धा रखना ही सम्यक श्रद्धा कहलाता है।
2. सम्यक ज्ञान
जीव और अजिव के वास्तविक स्वरूप को समझना तथा जैन सिद्धांतों का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना सम्यक ज्ञान कहलाता है।
3. सम्यक आचरण (चरित्र)
सत्कर्मों को अपनाना और पापकर्मों से दूर रहना ही सम्यक आचरण या चरित्र है।
इन्हीं तीनों का संतुलित पालन जैन धर्म का मूल आधार है।
📜 मुख्य सिद्धांत
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अहिंसा (Non-violence):
किसी भी जीव को मन, वचन या कर्म से हानि न पहुँचाना। -
सत्य (Truth):
सदा सत्य बोलना और छल-कपट से बचना। -
अचौर्य (Non-stealing):
जो वस्तु हमारी नहीं है, उसे लेना चोरी है — इससे बचना चाहिए। -
ब्रह्मचर्य (Celibacy):
इंद्रिय संयम और आत्मसंयम को अपनाना। -
अपरिग्रह (Non-possession):
लोभ, मोह, और भौतिक वस्तुओं के प्रति आसक्ति से मुक्त रहना।
🌼 महावीर स्वामी का पंचव्रत :
भगवान महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को पाँच प्रमुख शिक्षाएँ दीं, जिन्हें पंचव्रत कहा गया है —
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सत्य – सत्य बोलना, प्रिय वचन कहना और धार्मिक व्यवहार करना।
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अहिंसा – किसी भी जीव को मन, वचन या कर्म से हानि न पहुँचाना।
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अपरिग्रह – धन और भौतिक वस्तुओं के संग्रह से बचना।
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अस्तेय – चोरी या अनुचित लाभ न लेना।
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ब्रह्मचर्य – संयमित और सदाचारी जीवन जीना।
महावीर स्वामी से पहले के तीर्थंकरों ने पहले चार व्रत बताए थे, बाद में उन्होंने पाँचवाँ — ब्रह्मचर्य — जोड़ा।
भिक्षुओं को इन पाँच व्रतों का पालन कठोरता से करना आवश्यक है, जिन्हें पंचमहाव्रत कहा गया।
गृहस्थ अनुयायियों को इन्हीं का पालन हल्के रूप में करना होता है, जिन्हें पंचानुव्रत कहा जाता है।
📘 प्राचीन भारत का ऐतिहासिक स्रोत: भारत के इतिहास के प्रमुख स्रोत – अभिलेख, सिक्के, साहित्य और पुरातात्विक अवशेषों का विवरण।
☸️ जैन धर्म के अनुसार संयम और तप
जैन सिद्धांतों में कहा गया है कि गृहस्थ व्यक्ति को भी संयमपूर्वक जीवन जीना चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति के लिए किसी महान संकट से मुक्ति पाना असंभव हो जाए, तो उसे भोजन-पानी का त्याग कर शांतिपूर्वक प्राण त्यागना चाहिए —
इसे संलेखना कहा जाता है।
जैन धर्म देवताओं की उपस्थिति को स्वीकार करता है, लेकिन उन्हें सृष्टि का निर्माता नहीं मानता।
जैन मत में सृष्टि को शाश्वत और अनादि-अनंत माना गया है।
🪶 जैन धर्म के दार्शनिक विचार
जैन दर्शन के अनुसार संसार में सब कुछ दो प्रकार का होता है —
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उत्पत्ति (विकास)
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अवनति (क्षय)
इन दोनों प्रक्रियाओं में जीव और अजिव का परस्पर संबंध बताया गया है।
जैन परंपरा के अनुसार २४ तीर्थंकरों के अतिरिक्त ६३ शलाकापुरुष (महान पुरुष) माने गए हैं।
🍃 सप्त तत्व (सात तत्त्व)
जैन दर्शन के अनुसार अस्तित्व दो प्रकार का होता है —
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अस्तिकाय (जो स्थान घेरता है)
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अनस्तिकाय (जो स्थान नहीं घेरता)
अस्तिकाय में पाँच तत्व आते हैं —
जीव, धर्म, अधर्म, आकाश और पुद्गल (पदार्थ)।
अनस्तिकाय के अंतर्गत काल (समय) को माना गया है।
इन सबके समन्वय से जैन मत में विश्व की संरचना मानी जाती है।
📚 प्रमुख जैन साहित्य
जैन साहित्य किसी एक समय में नहीं, बल्कि विभिन्न कालों में रचा गया और बाद में उसका संकलन किया गया।
जैन साहित्य में ‘आगम’ को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। आगम का अर्थ होता है — सिद्धांत या धर्मग्रंथ।
📚 जैन आगम ग्रंथों की संरचना
| क्रमांक | ग्रंथ का प्रकार | कुल संख्या | विवरण |
|---|---|---|---|
| 1 | अंग (Anga) | 12 | जैन आगमों के मुख्य ग्रंथ, जिनमें जैन सिद्धांतों का मूल ज्ञान मिलता है। |
| 2 | उपांग (Upanga) | 12 | अंग ग्रंथों की पूरक व्याख्या करने वाले ग्रंथ। |
| 3 | प्रकीर्ण (Prakirnak) | 10 | विविध विषयों पर आधारित ग्रंथ। |
| 4 | छेदसूत्र (Chedasutra) | 6 | भिक्षुओं के नियम, अनुशासन और आचार संहिता से संबंधित ग्रंथ। |
| 5 | नंदीसूत्र (Nandi Sutra) | 1 | ज्ञान प्राप्ति के मार्ग और श्रवण के प्रकार पर आधारित ग्रंथ। |
| 6 | अनुयोगद्वार (Anuyogdwar Sutra) | 1 | जैन शास्त्रों को समझने के चार मार्गों का वर्णन करने वाला ग्रंथ। |
| 7 | मूलसूत्र (Mool Sutra) | 4 | जैन साधुओं के दैनिक जीवन और साधना के मूल नियमों पर आधारित ग्रंथ। |
📖 अन्य प्रमुख जैन ग्रंथ
| क्रमांक | ग्रंथ का नाम | विवरण |
|---|---|---|
| 1 | आचारांग सूत्र | इसमें जैन भिक्षुओं के आचरण और नियमों से संबंधित बातें संकलित हैं। |
| 2 | भगवती सूत्र | इसमें भगवान महावीर स्वामी के जीवन, उपदेशों और विविध क्रियाओं का विस्तृत वर्णन है। |
| 3 | नायाधम्मकथा सूत्र | इसमें महावीर स्वामी की शिक्षाएँ और उनके द्वारा दिए गए नैतिक उपदेश संग्रहीत हैं। |
| 4 | अंतगदसाओ सूत्र | इसमें प्रमुख भिक्षुओं के निर्वाण प्राप्ति का वर्णन किया गया है। उपर्युक्त सभी ग्रंथ प्राकृत अथवा अर्धमागधी भाषा में लिखे गए हैं। |
🙏 जैन संघ में प्रथम विभाजन
महावीर स्वामी के निर्वाण के लगभग २ शताब्दियों बाद जैन संघ में मतभेद उत्पन्न हुआ।
उनके प्रमुख शिष्य गौतम गणधर और उनके अनुयायियों के मतभेद के कारण जैन संघ दो भागों में बँट गया .
यह विभाजन वस्त्रधारण, आचार और ग्रंथ परंपरा के मतभेद के कारण हुआ था।
हेमचंद्र द्वारा रचित परिशिष्टपर्वण ग्रंथ से यह ज्ञात होता है कि मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में माघ मास में 12 वर्षों का अकाल पड़ा।
उस समय भद्रबाहु के नेतृत्व में कुछ जैन भिक्षु दक्षिण भारत के श्रवणबेलगोला क्षेत्र में चले गए, जबकि स्थूलभद्र के नेतृत्व में कुछ साधु वहीं रह गए।
इसी कारण जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय बन गए —
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श्वेतांबर संप्रदाय – स्थूलभद्र के अनुयायी, जो श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
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दिगंबर संप्रदाय – भद्रबाहु के अनुयायी, जो निर्वस्त्र रहते थे।
🪶 श्वेतांबर एवं दिगंबर संप्रदाय में अंतर
| क्रमांक | विशेषता | श्वेतांबर संप्रदाय | दिगंबर संप्रदाय |
|---|---|---|---|
| 1 | प्रवर्तक | स्थूलभद्र | भद्रबाहु |
| 2 | वस्त्र धारण | श्वेत वस्त्र धारण करते हैं | निर्वस्त्र रहते हैं |
| 3 | महावीर स्वामी का जीवन | विवाह हुआ था, एक पुत्री थी | अविवाहित माने जाते हैं |
| 4 | 19वां तीर्थंकर | मल्लिनाथ — स्त्री मानी जाती हैं | मल्लिनाथ — पुरुष माने जाते हैं |
| 5 | ज्ञान प्राप्ति के बाद आहार | भोजन आवश्यक | भोजन आवश्यक नहीं |
🕯️ जैन संगीति (धर्म परिषद)
जैन धर्म में विभिन्न परंपराओं और उपदेशों को एकत्र कर सुरक्षित रखने के लिए संगीतियों (धर्माचार्यों की परिषदों) का आयोजन किया गया।
पहली जैन संगीति चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में पाटलिपुत्र में आयोजित हुई थी, जिसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे।
| क्रमांक | संगीति / परिषद | समय / स्थान | अध्यक्ष / प्रमुख भिक्षु | उद्देश्य / उपलब्धि | महत्वपूर्ण तथ्य |
|---|---|---|---|---|---|
| 1 | प्रथम जैन संगीति | ई.पू. 300 के लगभग, पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र (श्वेतांबर संप्रदाय के प्रमुख) | जैन आगम ग्रंथों का संकलन एवं संरक्षण | यह सभा मगध राजा चंद्रगुप्त मौर्य के काल में हुई; इसे श्वेतांबर परंपरा मानती है। |
| 2 | द्वितीय जैन संगीति | ई.पू. 512 के लगभग, उदयगिरि (कर्णाटक) | भद्रबाहु (दिगंबर संप्रदाय के प्रमुख) | आगमों की मौखिक परंपरा को बचाना और साधु-संघ का पुनर्गठन | इस परिषद में दिगंबर परंपरा को मान्यता मिली; भद्रबाहु ने दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार किया। |
| 3 | तृतीय जैन संगीति (कुछ परंपराओं में) | ई.पू. 1वीं सदी, वलभी (गुजरात) | देवर्धिगणि क्षमाश्रमण | जैन आगमों का लिपिबद्ध (लिखित) रूप में संकलन | इस सभा में श्वेतांबर आगमों को पहली बार लिखा गया; लगभग 45 ग्रंथ संकलित किए गए। |
📚 जैन धर्म – परीक्षा उपयोगी तथ्य तालिका
क्रमांक विषय / शीर्षक तथ्य / विवरण 1 ‘जैन’ शब्द का अर्थ ‘जिन’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है — इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला। 2 जैन धर्म का आरंभिक प्रवर्तक ऋषभदेव (आदिनाथ) — प्रथम तीर्थंकर। 3 जैन धर्म की उत्पत्ति का काल लगभग 1500 ई.पू. (वैदिक काल के समकालीन)। 4 तीर्थंकरों की कुल संख्या 24 तीर्थंकर। 5 पहले तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ)। 6 अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी। 7 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ। 8 पार्श्वनाथ का काल महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व। 9 पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित संप्रदाय निर्ग्रंथ संप्रदाय। 10 महावीर स्वामी का जन्मस्थान कुंडग्राम (वैशाली, बिहार)। 11 महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ। 12 महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला। 13 महावीर स्वामी का बचपन का नाम वर्धमान। 14 महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा। 15 महावीर स्वामी की पुत्री का नाम प्रियदर्शना। 16 महावीर स्वामी के दीक्षा गुरु गोसाल मक्खली। 17 महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद। 18 ज्ञान प्राप्ति स्थल ऋजुपालिका नदी के किनारे, जृम्भिक ग्राम (बिहार)। 19 पहला उपदेश स्थल विपुलाचल पर्वत (राजगृह के निकट)। 20 पहले शिष्य जामिल। 21 प्रथम भिक्षुणी चंदना (चंपा नगर की राजकुमारी)। 22 महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्य गणधर (11 थे)। 23 महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल पावापुरी (बिहार)। 24 निर्वाण की आयु 72 वर्ष। 25 जैन धर्म के तीन रत्न (त्रिरत्न) सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण। 26 पंचव्रत (महावीर के अनुयायियों के लिए) सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य। 27 संघ के अनुशासन हेतु निर्देश भिक्षुओं को क्षमा, संयम, और सहनशीलता का पालन करना चाहिए। 28 जैन संघ में पहला विभाजन महावीर स्वामी के दामाद जामिल द्वारा। 29 मुख्य संप्रदाय श्वेतांबर और दिगंबर। 30 श्वेतांबर संप्रदाय के प्रवर्तक स्थूलभद्र। 31 दिगंबर संप्रदाय के प्रवर्तक भद्रबाहु। 32 जैन धर्म की प्रथम सभा (संघीति) पाटलिपुत्र में, स्थूलभद्र की अध्यक्षता में। 33 जैन तीर्थंकरों की कुल संख्या और प्रतीक 24 तीर्थंकर – प्रत्येक का एक प्रतीक (उदा. ऋषभदेव = बैल, पार्श्वनाथ = सर्प)। 34 जैन धर्म का मूल सिद्धांत अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य। 35 मोक्ष का मार्ग त्रिरत्न – सम्यक दर्शन, ज्ञान और आचरण। 36 आहार त्याग से मृत्यु की प्रक्रिया संलेखना (स्वैच्छिक उपवास)। 37 जैन दर्शन के दो प्रकार के चक्र उत्क्रांति (विकास) और अवक्रांति (हास)। 38 जैन धर्म के पंचमहाव्रत सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य। 39 जैन ब्रह्मांड का वर्गीकरण अस्तिकाय (जीव, धर्म, अधर्म, पुद्गल, आकाश) और अनस्तिकाय (काल)। 40 मुख्य ग्रंथ आचारांग सूत्र, भगवती सूत्र, नायाधम्मकथा सूत्र, अंतगदसाओ सूत्र। 41 जैन ग्रंथों की भाषा प्राकृत और अर्धमागधी। 42 जैन आगम की रचना 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 1 नंदीसूत्र, 1 अनुयोगद्वार, 4 मूलसूत्र।
| क्रमांक | विषय / शीर्षक | तथ्य / विवरण |
|---|---|---|
| 1 | ‘जैन’ शब्द का अर्थ | ‘जिन’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ है — इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाला। |
| 2 | जैन धर्म का आरंभिक प्रवर्तक | ऋषभदेव (आदिनाथ) — प्रथम तीर्थंकर। |
| 3 | जैन धर्म की उत्पत्ति का काल | लगभग 1500 ई.पू. (वैदिक काल के समकालीन)। |
| 4 | तीर्थंकरों की कुल संख्या | 24 तीर्थंकर। |
| 5 | पहले तीर्थंकर | ऋषभदेव (आदिनाथ)। |
| 6 | अंतिम तीर्थंकर | महावीर स्वामी। |
| 7 | 23वें तीर्थंकर | पार्श्वनाथ। |
| 8 | पार्श्वनाथ का काल | महावीर स्वामी से लगभग 250 वर्ष पूर्व। |
| 9 | पार्श्वनाथ द्वारा स्थापित संप्रदाय | निर्ग्रंथ संप्रदाय। |
| 10 | महावीर स्वामी का जन्मस्थान | कुंडग्राम (वैशाली, बिहार)। |
| 11 | महावीर स्वामी के पिता का नाम | सिद्धार्थ। |
| 12 | महावीर स्वामी की माता का नाम | त्रिशला। |
| 13 | महावीर स्वामी का बचपन का नाम | वर्धमान। |
| 14 | महावीर स्वामी की पत्नी का नाम | यशोदा। |
| 15 | महावीर स्वामी की पुत्री का नाम | प्रियदर्शना। |
| 16 | महावीर स्वामी के दीक्षा गुरु | गोसाल मक्खली। |
| 17 | महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति | 12 वर्ष की कठोर तपस्या के बाद। |
| 18 | ज्ञान प्राप्ति स्थल | ऋजुपालिका नदी के किनारे, जृम्भिक ग्राम (बिहार)। |
| 19 | पहला उपदेश स्थल | विपुलाचल पर्वत (राजगृह के निकट)। |
| 20 | पहले शिष्य | जामिल। |
| 21 | प्रथम भिक्षुणी | चंदना (चंपा नगर की राजकुमारी)। |
| 22 | महावीर स्वामी के प्रमुख शिष्य | गणधर (11 थे)। |
| 23 | महावीर स्वामी का निर्वाण स्थल | पावापुरी (बिहार)। |
| 24 | निर्वाण की आयु | 72 वर्ष। |
| 25 | जैन धर्म के तीन रत्न (त्रिरत्न) | सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक आचरण। |
| 26 | पंचव्रत (महावीर के अनुयायियों के लिए) | सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय, ब्रह्मचर्य। |
| 27 | संघ के अनुशासन हेतु निर्देश | भिक्षुओं को क्षमा, संयम, और सहनशीलता का पालन करना चाहिए। |
| 28 | जैन संघ में पहला विभाजन | महावीर स्वामी के दामाद जामिल द्वारा। |
| 29 | मुख्य संप्रदाय | श्वेतांबर और दिगंबर। |
| 30 | श्वेतांबर संप्रदाय के प्रवर्तक | स्थूलभद्र। |
| 31 | दिगंबर संप्रदाय के प्रवर्तक | भद्रबाहु। |
| 32 | जैन धर्म की प्रथम सभा (संघीति) | पाटलिपुत्र में, स्थूलभद्र की अध्यक्षता में। |
| 33 | जैन तीर्थंकरों की कुल संख्या और प्रतीक | 24 तीर्थंकर – प्रत्येक का एक प्रतीक (उदा. ऋषभदेव = बैल, पार्श्वनाथ = सर्प)। |
| 34 | जैन धर्म का मूल सिद्धांत | अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य। |
| 35 | मोक्ष का मार्ग | त्रिरत्न – सम्यक दर्शन, ज्ञान और आचरण। |
| 36 | आहार त्याग से मृत्यु की प्रक्रिया | संलेखना (स्वैच्छिक उपवास)। |
| 37 | जैन दर्शन के दो प्रकार के चक्र | उत्क्रांति (विकास) और अवक्रांति (हास)। |
| 38 | जैन धर्म के पंचमहाव्रत | सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य। |
| 39 | जैन ब्रह्मांड का वर्गीकरण | अस्तिकाय (जीव, धर्म, अधर्म, पुद्गल, आकाश) और अनस्तिकाय (काल)। |
| 40 | मुख्य ग्रंथ | आचारांग सूत्र, भगवती सूत्र, नायाधम्मकथा सूत्र, अंतगदसाओ सूत्र। |
| 41 | जैन ग्रंथों की भाषा | प्राकृत और अर्धमागधी। |
| 42 | जैन आगम की रचना | 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 1 नंदीसूत्र, 1 अनुयोगद्वार, 4 मूलसूत्र। |
🪔 जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक चिह्न
| क्रमांक | तीर्थंकर का नाम | प्रतीक चिह्न |
|---|---|---|
| 1 | ऋषभदेव (आदिनाथ) | वृषभ (बैल) |
| 2 | अजितनाथ | गज (हाथी) |
| 3 | संभरनाथ | अश्व (घोड़ा) |
| 4 | अभिनंदननाथ | कपि (बंदर) |
| 5 | सुमतिनाथ | कूर्च (कौआ) |
| 6 | पद्मप्रभु | पद्म (कमल) |
| 7 | सुपार्श्वनाथ | स्वास्तिक |
| 8 | चंद्रप्रभु | चंद्रमा |
| 9 | पुष्पदंत (सुविधिनाथ) | मकर (मगरमच्छ) |
| 10 | शीतलनाथ | श्रीवत्स (शुभ चिह्न) |
| 11 | श्रेयांसनाथ | गैंडा |
| 12 | वासुपूज्यनाथ | महिष (भैंसा) |
| 13 | विमलनाथ | वराह |
| 14 | अनंतनाथ | गरुड़ |
| 15 | धर्मनाथ | वज्र |
| 16 | शांतिनाथ | मृग |
| 17 | कुंथुनाथ | बकरी |
| 18 | अरनाथ | मीन (मछली) |
| 19 | मल्लिनाथ | कलश |
| 20 | मुनिसुव्रत | कूर्म (कछुआ) |
| 21 | नेमिनाथ | नील कमल |
| 22 | अरिष्टनेमि | शंख |
| 23 | पार्श्वनाथ | सर्पफणा |
| 24 | महावीर | सिंह |


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