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मौर्य वंश से पूर्व मगध पर शासन प्रशासन

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 मौर्य वंश से पूर्व मगध का शासन व्यवस्था 

 हर्यंक वंश (544 ई.पू. – 412 ई.पू.)

बिंबिसार (544–492 ई.पू.) 

 बिन्दुसार को हर्यंक वंश का प्रथम प्रसिद्ध शासक और मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है 

Bimbisar king
Source : ncert book

राजनीतिक स्थिति

  • बिंबिसार ने शासन संभालते ही मगध राज्य को संगठित और शक्तिशाली बनाया।

  • उसने पड़ोसी राज्यों से संबंध सुधारकर तथा युद्ध नीति अपनाकर मगध की सीमा का विस्तार किया।

  • उसकी राजधानी राजगृह (गिरिव्रज) थी, जो बाद में मगध की पहली राजधानी बनी।

  • बिंबिसार कुशल प्रशासक, राजनयिक और युद्धनीति में निपुण शासक था।


राजनयिक नीति और विवाह संबंध

बिंबिसार ने युद्ध के बजाय वैवाहिक संबंधों के माध्यम से अनेक राज्यों को मित्र बनाया —

  1. कोशल की राजकुमारी कोशलदेवी से विवाह —

    • इस विवाह से उसे काशी का एक भाग दहेज में मिला, जो मगध के लिए लाभदायक था।

  2. लिच्छवि संघ की राजकुमारी चेलना से विवाह —

    • इस विवाह से उसे वैशाली और लिच्छवि गणराज्य से मैत्री संबंध प्राप्त हुए।

  3. मद्र देश की राजकुमारी क्षेम (खेमा) से विवाह —

    • इससे पश्चिमोत्तर भारत से राजनीतिक संबंध स्थापित हुए।

इन विवाहों से मगध को बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा और स्थिरता मिली।

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 सैन्य विजय

  • बिंबिसार ने अंग देश के राजा ब्रह्मदत्त को हराकर अंग को मगध में मिला लिया

  • अंग की राजधानी चंपा उस समय व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र थी —
    इस विजय से मगध को आर्थिक समृद्धि और व्यापारिक नियंत्रण प्राप्त हुआ।

  • यह मगध साम्राज्य के विस्तार का प्रथम चरण था।


 प्रशासन और शासन व्यवस्था

  • राज्य को विभिन्न विभागों (राजस्व, न्याय, सेना आदि) में बाँटा गया।

  • बिंबिसार ने स्थानीय प्रशासन को मजबूत किया ताकि शासन की पकड़ सभी क्षेत्रों में रहे।

  • उसने राजकीय अधिकारियों की नियुक्ति योग्यता और निष्ठा के आधार पर की।

  • राजा सर्वोच्च शासक था और शासन वंशानुगत था


धार्मिक नीति

  • बिंबिसार बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों के प्रति श्रद्धालु था।

  • वह भगवान बुद्ध का समकालीन था।

    • बुद्ध के उपदेश सुनने के लिए उसने राजगृह में उनका स्वागत किया था।

    • उसने बौद्ध संघ को भूमि दान दी और विहारों का निर्माण करवाया।

  • उसने महावीर स्वामी का भी सम्मान किया और उनके अनुयायियों को संरक्षण दिया।

  • इस कारण मगध धार्मिक सहिष्णुता और आध्यात्मिक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हुआ।

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बिंबिसार की उपलब्धियाँ

क्षेत्रउपलब्धि
राजनीतिमगध राज्य को एकीकृत और संगठित किया और ,वैवाहिक गठबंधनों से पड़ोसी राज्यों से शांति बनाए रखी

सैन्य विस्तारअंग देश पर विजय प्राप्त की
प्रशासनकेंद्रीकृत शासन और प्रभावी स्थानीय प्रशासन की स्थापना
धर्मबौद्ध और जैन दोनों धर्मों का संरक्षण
राजधानीराजगृह (गिरिव्रज) को समृद्ध बनाया

  • बिंबिसार ने मगध को राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से संगठित किया।
  • उसके शासनकाल में मगध उत्तर भारत की एक प्रमुख शक्ति बन गया।
  • वास्तव में बिंबिसार ने उस साम्राज्य की नींव रखी जिस पर आगे अजातशत्रु, शिशुनाग और नंद वंशों ने मगध को महान बनाया।

अजातशत्रु (492 ई.पू. – 461 ई.पू.)

अजातशत्रु बिंबिसार का पुत्र था और हर्यंक वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था।
उसने अपने पिता बिंबिसार की हत्या कर सत्ता प्राप्त की।
उसके शासनकाल में मगध साम्राज्य की शक्ति और क्षेत्र दोनों का विस्तार हुआ।

Ajatshatru image



राजनीतिक पृष्ठभूमि

  • बिंबिसार ने अपने जीवित रहते ही अजातशत्रु को अंग प्रदेश का शासक (राजकुमार) नियुक्त कर दिया था।

  • बाद में अजातशत्रु ने महत्वाकांक्षा के चलते अपने पिता की हत्या कर दी और स्वयं मगध का राजा बन गया।

  • बौद्ध ग्रंथों में इसे क्रूर किंतु कुशल शासक कहा गया है।

  • उसकी नीति थी — राज्य विस्तार और पूर्ण प्रभुत्व”।

बौद्ध धर्म  जैन धर्म   महाजनपद काल 

प्रशासन और शासन

  • उसने अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए प्रशासनिक सुधार किए।

  • राजधानी राजगृह को उसने अधिक मजबूत बनाया और किलेबंदी करवाई।

  • उसने सेना को आधुनिक बनाया और नई युद्ध तकनीकें विकसित करवाईं —

    • महाशिलाकंटक — बड़े पत्थर फेंकने की यांत्रिक मशीन।

    • रस्सूपाश — लौह फंदे फेंकने वाली युद्ध मशीन।

  • उसने प्रशासन को तीन भागों में बाँटा —
    न्याय, सेना और राजस्व, और हर विभाग के अधिकारी नियुक्त किए।


लिच्छवि संघ से युद्ध

  • अजातशत्रु ने वैशाली के लिच्छवि गणराज्य से लंबा युद्ध किया।

  • लिच्छवियों की शक्ति गंगा के उत्तर क्षेत्र में बहुत थी, और वे मगध के लिए चुनौती थे।

  • इस युद्ध में अजातशत्रु ने लगभग 16 वर्षों तक युद्ध किया।

  • युद्ध में उसने उपरोक्त नई युद्ध मशीनों का उपयोग किया।

  • अंततः उसने लिच्छवियों को पराजित कर वैशाली को मगध में मिला लिया

  • इससे गंगा घाटी का बड़ा भाग मगध के नियंत्रण में आ गया


धर्म और दर्शन

  • अजातशत्रु भगवान बुद्ध और महावीर स्वामी का समकालीन था।

  • प्रारंभ में वह दोनों धर्मों से विरोध रखता था, किंतु बाद में बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया

  • उसने बुद्ध से अनेक प्रश्न पूछे और उनका शिष्य बन गया (संवाद ‘समंज्ञ फल सुत्त’ में वर्णित)।

  • उसके शासनकाल में प्रथम बौद्ध संगीति (First Buddhist Council) का आयोजन राजगृह (सप्तपर्णी गुफा) में हुआ।

    • इसकी अध्यक्षता महाकाश्यप ने की।

    • उद्देश्य था — बुद्ध के उपदेशों का संकलन करना।


राजधानी और निर्माण कार्य

  • अजातशत्रु ने राजगृह (गिरिव्रज) को और मजबूत किया तथा वहाँ किलेबंदी करवाई।

  • उसने पाटलिपुत्र के निकट भी नए नगर की स्थापना शुरू की, जिसे आगे चलकर पाटलिपुत्र कहा गया।

  • इस स्थान का चयन उसकी रणनीतिक स्थिति (गंगा और सोन नदी के संगम के पास) के कारण हुआ।

  • इस प्रकार, उसने भविष्य में मौर्य साम्राज्य की राजधानी के लिए आधार तैयार किया।


📊 अजातशत्रु की उपलब्धियाँ

क्षेत्रउपलब्धि
राजनीतिकपिता की हत्या कर सत्ता प्राप्त की, मगध को विशाल साम्राज्य में बदला
सैन्यनई युद्ध मशीनों का आविष्कार, लिच्छवि गणराज्य पर विजय
धार्मिकप्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन
प्रशासनमजबूत राजधानी, कुशल प्रशासन
सांस्कृतिकबौद्ध धर्म का संरक्षण और प्रचार

अजातशत्रु का धार्मिक योगदान

  • बौद्ध ग्रंथों में उसे बुद्ध का महान संरक्षक बताया गया है।

  • उसने बुद्ध के निर्वाण के बाद उनके धर्म के संरक्षण का कार्य किया।

  • उसकी प्रेरणा से बुद्ध के उपदेशों को मौखिक रूप में संकलित किया गया


अजातशत्रु की मृत्यु

  • बौद्ध परंपरा के अनुसार, जीवन के अंतिम समय में अजातशत्रु को अपने पिता की हत्या का गहरा पश्चाताप हुआ।

  • उसने तपस्या की और कहा जाता है कि उसकी मृत्यु के बाद मगध में अशांति का काल आया।

  • उसके बाद उदायिन (उसका पुत्र) ने सत्ता संभाली।

अजातशत्रु ने बिंबिसार द्वारा रखी गई नींव को मजबूत किया और
मगध को उत्तर भारत की सबसे शक्तिशाली महाजनपद शक्ति बना दिया।
उसकी युद्धनीति, प्रशासनिक दक्षता और धार्मिक सहिष्णुता ने आने वाले

शिशुनाग और नंद वंशों के लिए मार्ग प्रशस्त किया। 

उदायिन (461 ई.पू. – 445 ई.पू.)

उदायिन (Udayin) हर्यंक वंश का अंतिम प्रमुख शासक था।
यह अजातशत्रु का पुत्र था और हर्यंक वंश के उत्कर्ष काल का अंतिम राजा माना जाता है।

उदायिन (461 ई.पू. – 445 ई.पू.)

राजनीतिक स्थिति

  • अजातशत्रु की मृत्यु के बाद मगध साम्राज्य अस्थिर हो गया था।

  • उस समय वैशाली, अवंती, कोशल जैसे राज्यों से मगध को ख़तरा था।

  • उदायिन ने इन चुनौतियों के बीच मगध साम्राज्य को संभाला और उसे स्थिरता प्रदान की।


राजधानी का परिवर्तन — पाटलिपुत्र की स्थापना

  • उदायिन का सबसे बड़ा योगदान था —
    👉 राजधानी को “राजगृह” से बदलकर “पाटलिपुत्र” (आधुनिक पटना) में स्थापित करना।

  • पाटलिपुत्र गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था, जो भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत सुरक्षित था।

  • इस स्थान से पूरे उत्तर भारत के साथ व्यापार और प्रशासन दोनों को नियंत्रित करना आसान था।

  • यही पाटलिपुत्र आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की राजधानी बनी।

📍 पाटलिपुत्र को उसने “पाटलीग्राम” नामक छोटे नगर को विकसित कर बनाया था।


 राजनयिक और सैन्य नीति

  • उदायिन ने अपने पिता अजातशत्रु की विस्तारवादी नीति को कुछ हद तक जारी रखा,
    लेकिन उसका ध्यान शांति, प्रशासन और राजधानी के विकास पर अधिक था।

  • उसने सीमाओं पर स्थायी सेनाएँ तैनात कीं ताकि लिच्छवियों और अवंती के हमलों से सुरक्षा रहे।

  • उसके शासनकाल में मगध का प्रभाव पूर्व और दक्षिण दिशा तक फैल गया।


 प्रशासन और शासन व्यवस्था

  • उदायिन ने प्रशासन को अधिक संगठित रूप दिया।

  • उसने राजस्व प्रणाली, नगर प्रशासन और सुरक्षा तंत्र को सुदृढ़ बनाया।

  • पाटलिपुत्र में राजमहल, किले और नहरें बनवाईं।

  • उसके शासनकाल में मगध राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक विकास के दौर में प्रवेश कर गया।


 धर्म और संस्कृति

  • उदायिन ने बौद्ध और जैन दोनों धर्मों का समान रूप से सम्मान किया।

  • उसने बुद्ध की शिक्षाओं के प्रचार में योगदान दिया।

  • उसके शासनकाल में मगध में शिक्षा, दर्शन और धर्म का प्रसार हुआ।

  • राजगृह और पाटलिपुत्र दोनों बौद्ध अध्ययन केंद्र बने।


 मृत्यु और उत्तराधिकार

  • उदायिन की मृत्यु षड्यंत्र या विद्रोह में हुई मानी जाती है।

  • कुछ ग्रंथों के अनुसार, वह अवंती के आक्रमण में मारा गया।

  • उसकी मृत्यु के बाद हर्यंक वंश धीरे-धीरे कमजोर हुआ, और
    अंततः शिशुनाग वंश ने मगध की सत्ता संभाली (लगभग 412 ई.पू.)।


उदायिन की प्रमुख उपलब्धियाँ

क्षेत्रउपलब्धि
राजधानीराजगृह से पाटलिपुत्र स्थानांतरित की
प्रशासनशासन को स्थिर और संगठित बनाया
धर्मबौद्ध और जैन धर्मों का संरक्षण
भौगोलिक दृष्टिसामरिक दृष्टि से सुरक्षित राजधानी की स्थापना
सांस्कृतिक योगदानपाटलिपुत्र को सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र बनाया

  • उदायिन ने अपने पूर्वजों के कार्य को आगे बढ़ाया और
  • मगध को एक स्थायी, सुरक्षित और सुव्यवस्थित साम्राज्य में रूपांतरित किया।
  • उसके शासनकाल में पाटलिपुत्र का उदय हुआ,
  • जो आने वाले शिशुनाग, नंद और मौर्य वंशों की सफलता का आधार बना।

    शिशुनाग वंश (412 ई.पू. – 344 ई.पू.)

हर्यंक वंश के बाद मगध की सत्ता शिशुनाग वंश के हाथों में आई।
यह वंश मगध को राजनीतिक स्थिरता, साम्राज्य विस्तार और धार्मिक सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध है।


 शिशुनाग (412–394 ई.पू.)

 राजनीतिक पृष्ठभूमि

  • अजातशत्रु और उदायिन की मृत्यु के बाद हर्यंक वंश कमजोर हो गया था।

  • जनता और मंत्रियों ने शिशुनाग को मगध का राजा बनाया।

  • शिशुनाग पहले वैशाली का अमात्य (मंत्री) था, जो अपनी योग्यता से राजा बना।

शिशुनाग (412–394 ई.पू.)


 राजधानी

  • प्रारंभ में उसने वैशाली को राजधानी बनाया।

  • बाद में उसने राजधानी को पाटलिपुत्र स्थानांतरित कर दी, जो सामरिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त थी।


 विजय अभियान

  • शिशुनाग ने अवंतिनरेश चंद्र प्रद्योत वंश को पराजित किया।
    👉 इससे मगध को पश्चिम भारत तक विस्तार मिला।

  • उसने काशी, कोशल और अवंती पर अधिकार जमाया।

  • इसके शासनकाल में मगध साम्राज्य का क्षेत्रफल दोगुना हो गया।


 धर्म और संस्कृति

  • शिशुनाग बौद्ध धर्म का अनुयायी था।

  • उसने बौद्ध संघ को राजकीय संरक्षण दिया।

  • बौद्ध विहारों और अध्ययन केंद्रों की स्थापना की।


 कालाशोक (394–366 ई.पू.)

कालाशोक शिशुनाग का पुत्र और उत्तराधिकारी था।


धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान

  • द्वितीय बौद्ध संगीति (Second Buddhist Council) का आयोजन वैशाली में इसी के शासनकाल में हुआ (लगभग 383 ई.पू.)।

  • इसमें विनयपिटक और सुत्तपिटक के मतभेदों पर चर्चा हुई।

  • उसने बुद्ध के अनुयायियों के बीच शांति स्थापित करने की कोशिश की।

कालाशोक (394–366 ई.पू.)

 राजनीतिक स्थिति

  • कालाशोक के शासनकाल में मगध का शासन स्थिर रहा।

  • प्रशासनिक सुधार जारी रहे, परन्तु उसके बाद वंश धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगा।


 कालाशोक का अंत

  • कालाशोक की मृत्यु षड्यंत्र या विद्रोह में हुई मानी जाती है।

  • उसके बाद मगध की स्थिति अस्थिर हुई और धीरे-धीरे नंद वंश ने सत्ता पर अधिकार कर लिया।


नंद वंश (344 ई.पू. – 322 ई.पू.)

  • नंद वंश मगध साम्राज्य का सबसे समृद्ध और शक्तिशाली वंश था।
  • इस वंश ने आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक रूप से भारत को एकजुट करने की दिशा में काम किया।


महापद्म नंद (344–326 ई.पू.)

 राजनीतिक पृष्ठभूमि

  • नंद वंश का संस्थापक महापद्म नंद था।

  • पुराणों के अनुसार, वह मूल रूप से शूद्र वंश से था और उसने अपनी योग्यता से सत्ता प्राप्त की।

  • उसने अंतिम शिशुनाग शासक कालाशोक या उसके उत्तराधिकारी को पराजित कर सत्ता संभाली।


 विजय और विस्तार नीति

  • महापद्म नंद ने स्वयं को एकच्छत्र भारत का प्रथम सम्राट घोषित किया।

  • उसने कई क्षत्रिय वंशों (कुरु, पांचाल, काश्य, हैहय, अश्मक, कलिंग आदि) का अंत किया।

  • मगध साम्राज्य को उत्तर भारत से लेकर दक्षिण तक फैलाया।

  • उसकी विशाल सेना में कहा जाता है —

    20,000 अश्वारोही, 200,000 पैदल सैनिक, 2,000 रथ और 3,000 हाथी थे।

  • इस कारण नंद वंश को “भारतीय इतिहास का प्रथम विशाल केंद्रीकृत साम्राज्य” माना जाता है।


 आर्थिक नीति

  • महापद्म नंद ने कठोर कर नीति अपनाई।

  • उसने राजकोष को अत्यधिक समृद्ध बनाया।

  • राज्य में कृषि, व्यापार और उद्योग को बढ़ावा दिया गया।

  • नंदों की विशाल संपत्ति ने आगे चलकर मौर्य साम्राज्य की नींव को आर्थिक मजबूती दी।


 प्रशासन

  • शासन केंद्रीकृत और नौकरशाही पर आधारित था।

  • राजा के अधीन उच्च अधिकारी कार्य करते थे।

  • राज्य को विभिन्न प्रांतों में बाँटा गया था, जिन पर राजकीय अधिकारी नियुक्त थे।

  • न्याय व्यवस्था और जासूसी तंत्र भी अत्यंत सुदृढ़ था।


धनानंद (326–322 ई.पू.)

धनानंद नंद वंश का अंतिम शासक था।


राजनीतिक स्थिति

  • धनानंद अत्यंत धनी था लेकिन प्रजा में अप्रिय और अहंकारी माना जाता था।

  • उसने सिकंदर के भारत अभियान (326 ई.पू.) के समय उत्तरी भारत पर शासन किया।

  • सिकंदर के सैनिकों ने जब मगध की विशाल सेना के बारे में सुना, तो उन्होंने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया।

  • इस प्रकार धनानंद का नाम सिकंदर के भारत विजय अभियान से भी जुड़ा है।

धनानंद (326–322 ई.पू.)


पतन

  • धनानंद की दुराचारी नीति और अत्याचारों के कारण जनता असंतुष्ट हो गई।

  • चाणक्य (कौटिल्य) ने नंद वंश को समाप्त करने का संकल्प लिया।

  • चंद्रगुप्त मौर्य ने चाणक्य की सहायता से धनानंद को पराजित किया और
    👉 322 ई.पू. में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।


नंद वंश की प्रमुख विशेषताएँ

क्षेत्रउपलब्धि
राजनीतिकेंद्रीकृत शासन और विशाल साम्राज्य की स्थापना
अर्थव्यवस्थाअत्यधिक राजस्व और समृद्ध कोष
सेनाप्राचीन भारत की सबसे बड़ी स्थायी सेना
धर्मधर्मनिरपेक्ष और व्यवहारिक नीति
पतन का कारणअत्यधिक कर, जनता का असंतोष, अहंकार

शिशुनाग और नंद वंशों ने मगध साम्राज्य को भारतीय उपमहाद्वीप की सबसे बड़ी शक्ति बना दिया।
विशेष रूप से नंद वंश की आर्थिक और सैन्य शक्ति ने मौर्य साम्राज्य के उदय की मजबूत नींव रखी।

 प्रमुख तथ्य :

वंश/शासक शासनकाल प्रमुख योगदान/विशेषताएँ राजधानी प्रमुख उपलब्धियाँ
हर्यंक वंश 544–412 ई.पू. मगध की नींव रखी, प्रशासनिक और धार्मिक नीति राजगृह (गिरिव्रज) मगध को संगठित और शक्तिशाली बनाया
बिंबिसार 544–492 ई.पू. वैवाहिक और सैन्य नीति, बाहरी राज्यों से मित्रता राजगृह अंग पर विजय, प्रशासन मजबूत किया, धर्म संरक्षण
अजातशत्रु 492–461 ई.पू. विस्तारवादी नीति, लिच्छवि पर विजय राजगृह युद्ध मशीनों का उपयोग, प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन
उदायिन 461–445 ई.पू. राजधानी पाटलिपुत्र में स्थानांतरण, प्रशासन सुदृढ़ पाटलिपुत्र पाटलिपुत्र को राजनीतिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया
शिशुनाग वंश 412–344 ई.पू. मगध की राजनीतिक स्थिरता और विस्तार पाटलिपुत्र अवंती, काशी, कोशल पर अधिकार, बौद्ध धर्म संरक्षण
शिशुनाग 412–394 ई.पू. पश्चिम भारत तक विस्तार पाटलिपुत्र सेना और प्रशासन सुदृढ़ किया
कालाशोक 394–366 ई.पू. द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन पाटलिपुत्र बौद्ध धर्म में शांति और सुधार
नंद वंश 344–322 ई.पू. विशाल केंद्रीकृत साम्राज्य, आर्थिक शक्ति पाटलिपुत्र विशाल सेना, समृद्ध राजकोष, मजबूत प्रशासन
महापद्म नंद 344–326 ई.पू. साम्राज्य विस्तार, केंद्रीकरण पाटलिपुत्र भारत का प्रथम विशाल केंद्रीकृत साम्राज्य
धनानंद 326–322 ई.पू. अत्याचारी और अहंकारी शासक पाटलिपुत्र जनता असंतुष्ट, मौर्य साम्राज्य की नींव बनी